Hanuman Jayanti 2025: क्यों साल में दो बार मनाई जाती है हनुमान जयंती? माता सीता से मिला था वरदान, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
हनुमान जी को सभी संकटों को दूर करने वाले और हर परेशानी से निजात दिलाने वाले देवता माना जाता है। इसलिए उन्हें संकटमोचन भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी इकलौते ऐसे देवता हैं, जो कलयुग में आज भी धरती पर वास करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर देश में नई नीति की जरूरत
NEWS SAGA DESK भारतीय रिजर्व बैंक के मार्च बुलेटिन में प्रकाशित अध्ययन में एक गंभीर चिंता जताई गई है, जो देश में वर्षा के वितरण में तेजी से आ रहे बदलाव और खाद्यान्न फसलों पर इसके असर से जुड़ी है। अध्ययन कहता है कि भारतीय कृषि अब भी काफी हद तक मॉनसून पर निर्भर है। आधुनिक सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और जलवायु परिवर्तन से बेअसर रहने वाले नई किस्मों के बीज तैयार होने से राहत तो मिली है मगर मॉनसूनी बारिश अब भी निर्णायक होती है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान होने वाली वर्षा खरीफ सत्र में कृषि उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। वर्षा का तरीका बदलने या सूखे जैसी स्थिति से फसल उगाने का चक्र बिगड़ जाता है और कीटों एवं पौधों से जुड़ी बीमारियों की समस्या भी बढ़ जाती है। पर्याप्त और समान वर्षा होने से कृषि उत्पादकता बढ़ जाती है। मॉनसून में अच्छी बारिश रबी सत्र के अनुकूल होती है। मिट्टी में पर्याप्त नमी रहने और जलाशयों में पानी का स्तर अधिक रहने से गेहूं, सरसों और दलहन जैसी फसलों की बुआई के लिए आदर्श स्थिति तैयार होती है। खरीफ सत्र में मोटे अनाज, तिलहन, दलहन और चावल की उपज में सालाना वृद्धि के आंकड़े देखें तो जिस साल दक्षिण पश्चिम मॉनसून सभी फसलों के लिए बेहतर रहा उस साल उत्पादन भी ज्यादा रहा लेकिन अतिवृष्टि ने मक्के और तिलहन की उपज बिगाड़ी। अध्ययन में कहा गया है कि उत्पादन इस बात पर भी निर्भर करता है कि मॉनसूनी बारिश कब आती है। उदाहरण के लिए जून और जुलाई में कम बारिश मक्का, दलहन और सोयाबीन के लिए खासतौर पर नुकसानदेह होती है क्योंकि मिट्टी में नमी कम होने के कारण बुआई अटक जाती है और पौधों की शुरुआती बढ़वार पर भी असर पड़ता है। इसी तरह कटाई के समय अत्यधिक वर्षा से तिलहन उत्पादन घट जाता है। पिछले साल मॉनसून में शानदार वर्षा और सटीक ठंड रहने से चालू वित्त वर्ष में फसलों का उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है। अनुमान है कि पिछले साल के मुकाबले खरीफ का उत्पादन 7.9 प्रतिशत और रबी का 6 प्रतिशत बढ़ सकता है। भारतीय मौसम विभाग ने 2025 के लिए मॉनसून के अनुमान जारी नहीं किए हैं मगर विश्व मौसम विज्ञान संगठन का अनुमान है कि भारत में इस साल वर्षा सामान्य या इससे अधिक हो सकती है। ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में आने वाले बदलाव कृषि उत्पादन पर ज्यादा असर डाल सकते हैं। मौसम की अतिरंजना अब अनोखी बात नहीं रह गई है। भारत में पिछले साल 365 में से 322 दिन मौसम की अति दिखी थी। इससे देश में 4.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसलें प्रभावित हुईं। 2023 में 318 दिन मौसम ऐसा रहा था। जब तक इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए बहु-आयामी नीति नहीं अपनाई जाती है तब तक ऐसी घटनाएं बढ़ती ही रहेंगी। पिछले साल कम और असमान वर्षा के कारण गर्म हवा और बाढ़ की 250 घटनाएं सामने आईं। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान और बाढ़ के कारण फसलों का उत्पादन घटने और इनमें पोषक तत्व कम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। बदलती परिस्थितियों को देखते हुए जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यों की तरफ कदम बढ़ाना आवश्यक हो गया है। कृषि में जलवायु परिवर्तन सहने की क्षमता रखने तौर-तरीके, नालियों की प्रणाली में सुधार, बाढ़ एवं सूखा प्रबंधन और तकनीक अपनाकर कृषि क्षेत्र में क्षमता एवं टिकाऊपन बढ़ाया जा सकता है। लंबे अरसे के लिए जल प्रबंधन पर भी हमें सतर्क रहना होगा। जैविक या रसायन रहित कृषि के बजाय प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करना होगा। इससे अलग-अलग मियाद वाली विविध फसलों से किसानों की आय ही नहीं बढ़ती बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है। कुल मिलाकर भारत को जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने और अनुकूल रणनीति अपनाने के लिए काम करना होगा।
सुनीता विलियम्स : साहस से छुआ आसमान
“अगर देखना चाहते हो मेरे हौसलों की उड़ान तो आसमान से कह दो कि और ऊँचा हो जाए।”
ये पंक्तियाँ निश्चित ही ऐसा आभास कराती हैं कि यह असंभव जैसी बात है क्योंकि आसमान में उड़ने वाली बात किसी ऐसे सपने जैसी ही लगती है, जो पूरा हो ही नहीं सकता। लेकिन व्यक्ति के पास साहस और धैर्य है तो वह असंभव लगने वाले लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकता है।
‘रागनी’ को लुप्त होने से बचाने की जरूरत
हरियाणा की लोक संस्कृति में रागनी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह न केवल मनोरंजन का माध्यम रही है, बल्कि सामाजिक संदेश देने, वीर रस जगाने और लोक इतिहास को संजोने का एक प्रभावशाली जरिया रही है। रागनी लोगों को बुराइयों के खिलाफ खड़ा करने का माध्यम भी रही है। इसके प्रचार-प्रसार में जाहरवीर कल्लू खां, अजीत सिंह गोरखपुरिया, दयाचंद लांबा, राजेंद्र खड़खड़ी, जसमेर खरकिया, सुरेंद्र भादू, सूरजभान बलाली, मामन खान, सतीश ठेठ, कविता कसाना के साथ-साथ और भी कई महान कलाकारों का योगदान रहा है।
भारत का पानी पर बड़ा संदेश
इसी महीने 22 मार्च को मनाए गए विश्व जल दिवस पर भारत ने पूरी दृढ़ता के साथ दुनिया को बड़ा संदेश दिया है। हरियाणा के पंचकूला में ‘जल शक्ति अभियान: कैच द रेन-2025’ की शुरुआत करते हुए केंद्रीय जल शक्तिमंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि अगर कभी पानी को लेकर तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो भारत उसका हिस्सा नहीं होगा।
चैत्र नवरात्र 30 मार्च से, छठ महापर्व एक अप्रैल से प्रारंभ
चैत्र नवरात्र 30 मार्च रविवार को प्रवर्धमान योग में कलश स्थापना के साथ प्रारंभ होगा। यह दिन काफी महत्वपूर्ण और पुनीत है, क्योंकि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने पूरी सृष्टि की रचना की थी। पंडित मनोज पांडेय ने बुधवार को बताया कि 29 मार्च को शाम 4.33 बजे प्रतिपदा तिथि शुरू होगी
विशेष मुहूर्त और पर्व की समय-सारणी, जानें क्यों इस साल होली है खास
होली का पर्व हर साल प्रेम और खुशियों का प्रतीक मानकर मनाया जाता है। इस साल खासकर 2025 में होली का त्योहार कुछ खास समय और मुहूर्त के साथ मनाया जाएगा। यह सिर्फ रंगों का पर्व नहीं बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है।
रोपवे निर्माण से केदारनाथ यात्रा में बनेंगे यात्री संख्या के नये कीर्तिमान, बढ़ेगा रोजगार
सबकुछ ठीक रहा तो वर्ष 2032 से बाबा केदार के भक्त रोपवे से केदारनाथ धाम पहुंच सकेंगे। 12.9 किमी लंबे रोपवे बनने से केदारनाथ यात्रा में प्रतिवर्ष यात्रियों की संख्या के नये कीर्तिमान भी स्थापित होंगे। यही नहीं, रोपवे निर्माण से पैदल मार्ग पर दबाव भी कम होगा और घोड़ा-खच्चरों का संचालन सुलभ होगा, जिससे किसी पैदल यात्री को कोई दिक्कत नहीं होगी।
सावित्रीबाई फुले: महिला शिक्षा की अग्रदूत
सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा और सामाजिक सुधार को अपने जीवन का मिशन बना लिया। उन्होंने विधवा विवाह को बढ़ावा देने, छुआछूत मिटाने और महिलाओं को शिक्षित करने के लिए समाज की रूढ़िवादी सोच से जमकर संघर्ष किया। उस दौर में महिलाओं को घर की चारदीवारी तक सीमित रखा जाता था। हालाँकि, इस्लामिक आक्रमणों से पहले भारतीय समाज में महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता थी लेकिन बाद में उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया गया।
प्रोसेस्ड, फास्ट फूड से बढ़ता स्वास्थ्य संबंधी जोखिम
भारत की खाद्य संस्कृति वैश्वीकरण, शहरीकरण और बदलती जीवनशैली के कारण बदल रही है। यह प्रमुख सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का भी कारण बन रही है। भारत में युवा पीढ़ी तेजी से फास्ट फूड का सेवन कर रही है, जिसके कारण मोटापा, टाइप 2 मधुमेह और हृदय सम्बंधी विकार जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा हो रही हैं। फास्ट फूड में अक्सर बड़ी मात्रा में कैलोरी, चीनी, सोडियम और खराब वसा होती है, जो खराब खाने की आदतों और पोषण सम्बंधी कमियों को जन्म दे सकती है। इसका परिणाम एक गतिहीन जीवन शैली भी हो सकता है, जो किसी के स्वास्थ्य के लिए जोखिम बढ़ाएगा।