পাকিস্তানে গৃহযুদ্ধের পরিস্থিতি?
সকাল সকাল ডেস্ক। সুরেশ হিন্দুস্তানি পহেলগামে ঘটে যাওয়া সন্ত্রাসী ঘটনার পর ভারতের পাল্টা পদক্ষেপের পর পাকিস্তান আবারও হতাশ ও নিরাশ দেখাচ্ছে। এই হতাশার কারণে পাকিস্তান আমেরিকার কাছে মিনতি করে ভারতের জোরালো পদক্ষেপকে যুদ্ধবিরতিতে রূপান্তরিত করতে সফল হয়েছে। কিন্তু এতে পাকিস্তানের উপর ঝুলে থাকা সংকটের সম্পূর্ণ সমাধান হয়নি। ভারত স্পষ্টভাবে বলেছে যে জল এবং রক্ত একসাথে প্রবাহিত হতে পারে না। সন্ত্রাস ও আলোচনা একসাথে হতে পারে না। এর অর্থ স্পষ্ট যে ভারত কারো চাপে নেই। সন্ত্রাসবাদ নির্মূলের জন্য তার অভিযান অব্যাহত থাকবে। যদিও এখন যুদ্ধবিরতি হয়েছে, কিন্তু চারপাশ থেকে কঠোরভাবে ঘিরে থাকা পাকিস্তানের সামনে এখন নতুন চ্যালেঞ্জ উত্থিত হয়েছে। এই নতুন চ্যালেঞ্জ ভারত তৈরি করেনি, বরং তাদের আপনজনরাই তৈরি করেছে। পাকিস্তানের শাহবাজ শরীফের সরকারকে রাজনৈতিক বিরোধীদের ক্ষোভের মুখে পড়তে হচ্ছে, অন্যদিকে সাধারণ মানুষও সরকারের যুদ্ধবিরতির সিদ্ধান্তে অসন্তুষ্ট। সাধারণ মানুষ তাদের নিজস্ব সরকার এবং সেনাবাহিনীর উপর নানা প্রশ্ন তুলতে শুরু করেছে। বলা হয়, যখন ধোঁয়া উঠেছে, তখন আগুনও তার রূপ দেখাতে পারে। তবে পাকিস্তানের ব্যাপারে এটা সত্য যে তারা নিজেদের দেশেই বারুদের স্তূপ তৈরি করেছে। এই বারুদের স্তূপগুলো সন্ত্রাসী নেতাদের দ্বারা পরিচালিত প্রশিক্ষণ শিবির। যেখানে সন্ত্রাসীদের জন্ম দেওয়া হয়। আজ যেখানে সারা বিশ্বে সন্ত্রাসের বিরুদ্ধে পরিবেশ রয়েছে, সেখানে পাকিস্তান সন্ত্রাসীদের লালন-পালনকারী দেশ হিসেবে পরিচিতি লাভ করেছে। এটা বহুবার প্রমাণিতও হয়েছে। আজও পাকিস্তানের অভ্যন্তরে আন্তর্জাতিক সন্ত্রাসী হিসেবে ঘোষিত সন্ত্রাসীরা লুকিয়ে আছে। ভারত অপারেশন সিন্দুরের অধীনে যেভাবে সন্ত্রাসী শিবিরে আক্রমণ করেছে, তাতে আবারও প্রমাণিত হয়েছে যে পাকিস্তানে সন্ত্রাসবাদী তৈরির শিল্প চলছে। সন্ত্রাসের বিরুদ্ধে ব্যবস্থা নেওয়ার জন্য পাকিস্তানকে বহুবার সতর্ক করা হয়েছে, কিন্তু পাকিস্তান সরকার সন্ত্রাসীদের বিরুদ্ধে কোনো কঠিন অভিযান চালায় না। এর কারণ হলো পাকিস্তানের রাজনীতি সন্ত্রাসীরাই পরিচালনা করে। সন্ত্রাসীরা বহুবার সরকার গঠনের জন্য রাজনৈতিক দলগুলোকে সমর্থনও দেয়। যখন পাকিস্তানে ইমরান খানের সরকার ছিল, তখন বলা হতো যে ইমরান সেনাবাহিনী এবং সন্ত্রাসীদের সমর্থন পেয়েছিলেন। আজ ইমরানের দল বিরোধী দলে। তাই তার দলের কর্মীরা সরকারের বিরুদ্ধে পরিবেশ তৈরি করতে ব্যস্ত। পাকিস্তানের অভ্যন্তরে রাজনৈতিক বিদ্বেষ এতটাই যে যে রাজনৈতিক দলই ক্ষমতায় আসে, তারা তাদের পূর্ববর্তী শাসককে সরিয়ে দেওয়াকেই তাদের প্রধান কাজ মনে করে। বর্তমানে শাহবাজ শরীফ প্রধানমন্ত্রী, তিনি তার পূর্ববর্তী প্রধানমন্ত্রী ইমরান খানের বিরুদ্ধে অনেক অভিযোগ এনে তাকে জেলে পাঠানোর কাজ করেছেন। পাকিস্তানে এমন ঘটনা এই প্রথম নয়। এর আগেও এমনটা হয়েছে। তাই বলা যায়, এটা পাকিস্তানের নিয়তি হয়ে গেছে। যার কারণে পাকিস্তানের রাজনৈতিক দলগুলোর মধ্যে গুরুতর মতভেদ রয়েছে। আজ পাকিস্তানে পাকিস্তান মুসলিম লীগের নেতা শাহবাজ শরীফ প্রধানমন্ত্রী হলেও পাকিস্তান পিপলস পার্টির নেতা বিলাওয়াল ভুট্টোও সরকারে রয়েছেন। একসময় একে অপরের ঘোর বিরোধী এই দুটি দল বেমানান জোট করে পাকিস্তানে সরকার চালাচ্ছে। এমনটা করা হয়েছে কারণ এই দুটি দলের একটাই উদ্দেশ্য ছিল, ইমরান খানকে ক্ষমতায় আসা থেকে আটকানো। সবচেয়ে বেশি আসন পাওয়ার পরও ইমরানকে বিরোধী দলের ভূমিকায় সন্তুষ্ট থাকতে হয়েছে। এখন ইমরান খানের সমর্থকরা যুদ্ধবিরতির পর সরকারের বিরুদ্ধে অভিযান শুরু করেছে। একইভাবে, বেলুচিস্তানের ভূমিকা সম্পর্কে সবাই জানে। বিএলএ সৈন্যরা বহুবার পাকিস্তান সেনাবাহিনীকে আক্রমণ করে বুঝিয়ে দিয়েছে যে তারা আর পাকিস্তানের সাথে থাকতে পারবে না। ভারত ও পাকিস্তানের মধ্যে চলমান যুদ্ধের মধ্যে বেলুচিস্তানও পাকিস্তান সেনাবাহিনীকে লক্ষ্য করে বেশ কয়েকটি আক্রমণ চালিয়েছে। এর আগে বেলুচিস্তানের যোদ্ধারা জাফর এক্সপ্রেস হাইজ্যাক করে পাকিস্তান সরকারের সামনে চ্যালেঞ্জিং পরিস্থিতি তৈরি করেছিল। বেলুচিস্তান দীর্ঘদিন ধরে পাকিস্তান থেকে স্বাধীনতার দাবি করে আসছে। অন্যদিকে, পাকিস্তানের অভ্যন্তরে সিন্ধু ও পাঞ্জাবেও বহুবার সরকারের বিরুদ্ধে আওয়াজ উঠেছে। বলা হয়, এই দুটি রাজ্যের সাথে সরকার অবহেলিত আচরণ করেছে। এর কারণে পাকিস্তান সরকারকে জনগণের বিরোধিতার মুখে পড়তে হয়েছে। এই পুরো পরিস্থিতি পাকিস্তানকে গৃহযুদ্ধের দিকেও নিয়ে যেতে পারে।
जातिगत जनगणना…यह महज आंकड़ों की लड़ाई नहीं
जातिगत जनगणना पर जो बहस चल रही है…वो महज आंकड़ों की लड़ाई नहीं है। ये असल में भारत के सामाजिक ढांचे को समझने और फिर उसे नए सिरे से गढ़ने की एक बड़ी कोशिश है। अब जो लोग इसका समर्थन करते हैं-उनका ये मानना है कि इससे पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों की सच्चाई सामने आएगी।
त्रेता और द्वापर युग से चिरंजीवी हैं भगवान परशुराम
भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं। वे भगवान श्रीराम के समय भी थे और भगवान श्रीकृष्ण के समय भी मौजूद रहे, आज भी उन्हें साक्षात जीवित देव माना जाता है। भगवान परशुराम ने ही श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था।
खेलो इंडिया में दिखेगा बिहार का दमखम
विकास के साथ जिस सर्व-समावेशिता की बात आज विश्व बैंक से संयुक्त राष्ट्र तक हर मंच पर होती है, उसके लिए हो रहे प्रयास देश के संघात्मक ढांचे की नई चमक को जाहिर कर रहे हैं। इस लिहाज से सबसे दिलचस्प है खेलों की दिशा में राज्यों का शानदार प्रदर्शन।
मजदूरों के महत्व को दर्शाता मजदूर दिवस
मजदूर दिवस मजदूरों के महत्व को दर्शाने का महत्वपूर्ण उत्सव है। भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है।
अब तो आतंक पर हो आर-पार
पहलगाम में आतंकियों ने जिस बर्बरता से हिन्दू पर्यटकों को निशाना बनाकर उनकी हत्या की है, वह कई बड़े सवाल खड़े करता है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या वास्तव में भारत में हिन्दू होना अपराध है, अगर नहीं तो पाकिस्तानी आतंकियों ने उन्हें केवल हिन्दू होने की सजा क्यों दी।
जम्मू-कश्मीर : हिन्दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां, कौन-सा भारत बना रहे हम
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने अंदर तक झकझोर दिया है। कहने को कहा जा रहा है कि विदेशी साजिश थी, पाकिस्तान का हाथ था लेकिन यह हाथ घर के अंदर आया कैसे? घर के भी कोई अपने थे, जो इस पूरे आतंकवादी घटनाक्रम में शामिल हैं।
संघर्ष के लिए तो दुर्गा उरांव भी हकदार है
संयुक्त बिहार में रांची जिला के मोराबादी दाल्हातु गाँव में फेतिया मुंडा और धाधु मुंडा के पुत्र का जन्म हुआ, नामकरण हुआ दुर्गा उराँव। बितते समय के साथ परिवार के बिच रहकर खेती किसानी भी किया।
डिजिटल दुनिया का मानसिक बोझ: जब स्टेटस छीनने लगे चैन
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। स्टेटस, प्रोफाइल और पोस्ट के ज़रिये लोग अपनी ज़िंदगी का चमकदार पक्ष दिखाते हैं, जिससे दूसरों में असंतोष, ईर्ष्या और आत्म-संदेह पैदा होता है। यह तुलना और जिज्ञासा धीरे-धीरे मानसिक अशांति का कारण बन जाती है।
चॉक से चुभता शोषण: प्राइवेट स्कूल का शिक्षक और उसकी गूंगी पीड़ा
जब भी परीक्षाओं के रिजल्ट आते हैं तो अमूमन सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों के परिणाम बेहतर होते हैं।इसके पीछे इन स्कूलों के शिक्षकों की कड़ी मेहनत होती है। प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों से उम्मीदें तो आसमान छूती हैं, लेकिन उन्हें न तो उचित वेतन मिलता है, न सम्मान, न छुट्टी और न ही सुरक्षा।